Jaisalmer Tourist Places

Jaisalmer tourist places/जैसलमेर के पर्यटन स्थल।

जैसलमेर राजस्थान राज्य का सबसे बड़ा जिला है। गोल्डन सिटी के नाम से मशहूर जैसलमेर घूमने के लिए बहुत ही खूबसूरत और एतिहासिक जगह है, जहां देश दुनिया से हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। रेतीली पहाड़ियां और थार रेगिस्तान जैसलमेर की खूबसूरती को और भी बढ़ाते हैं। जैसलमेर के पर्यटन स्थलों को हम निम्न प्रकार से श्रेणीबद्ध कर सकते हैं...

1.सोनारगढ़ दुर्ग

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जैसलमेर री ख्यात के अनुसार सोनारगढ़ के नाम से प्रसिद्ध इस दुर्ग की नींव श्री कृष्ण के वंशज भाटी रावल जैसल ने 12 जुलाई 1155 को रखी। उनकी मृत्यु होने पर उनके पुत्र व उत्तराधिकारी शालीवाहन द्वितीय ने इस दुर्ग का अधिकांश निर्माण कार्य करवाया। यह दुर्ग त्रिकुटाकृति का है, जिसमें 99 बुर्ज हैं। यह गहरे पीले रंग के पत्थरों से निर्मित है, जो सूर्य की धूप में स्वर्णिम आभा बिखेरते हैं। इसी वजह से इसे सोनारगढ़ कहा जाता है। यह बिना चुने के सिर्फ पत्थर पर पत्थर रखकर बनाया गया है, जो इसके स्थापत्य की अनूठी विशेषता है। जैसलमेर दुर्ग विश्व का एक मात्र दुर्ग है, जिसकी छत लकड़ी की बनी हुई है। जैसलमेर में पर्यटकों के आगमन का मुख्य कारण यह सोनारगढ़ दुर्ग ही है।


 2.गड़ीसर झील

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इस झील का निर्माण रावल घड़सी के शासनकाल में हुआ था। इस कृत्रिम झील का मुख्य प्रवेश द्वार "टीलों की पिरोल" के रूप में जाना जाता है। यहां पर हजरत जमाल शाहपीर की दरगाह भी है। शांतिपूर्ण वातावरण पसन्द करने वाले पर्यटकों के लिए यह सर्वोत्तम स्थान है। सूर्यास्त का समय यहां आने का सबसे अच्छा समय है। पर्यटकों के लिए यह झील सुबह 8 बजे से शाम 8 बजे तक खुली रहती है। आप यहां नौका विहार ओर झील के पास सड़क किनारे स्थित विभिन्न सुपरमार्केट से खरीदारी भी कर सकते हैं।


3.पटवों की हवेली

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यह 5 मंजिला हवेली अपनी नक्काशी व पत्थर में बारिक कटाई के लिए प्रसिद्ध है। यह एक हवेली नहीं बल्कि 5 छोटी हवेलियों का समूह है। इसकी पहली हवेली 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में पटवा गुमान चंद द्वारा बनवाई गई थी। यह सबसे बड़ी हवेली है। इनकी पहली हवेली को "कोठारी की पटवा हवेली" भी कहा जाता है। स्थापत्य व सौंदर्यबोध की दृष्टि से पटवों की हवेलियों का स्थान प्रथम है। पटवों की हवेली जैसलमेर में सबसे बड़ी हवेली है। 66 झरोखों से युक्त ये हवेलियां 8-10 फिट ऊंचे चबूतरों पर बनी हुई हैं। भूमि से ऊपर 5 मंजिल और एक मंजिल तलघर के रूप में है। इस हवेली को गुमान चंद पटवा ने अपने 5 बेटों के लिए बनवाया था।


4.सालिम सिंह की हवेली

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जैसलमेर के प्रधानमंत्री सालिम सिंह द्वारा 18 वीं सदी में बनाई गई यह 5 मंजिला हवेली अपनी पत्थर की नक्काशी व महीन जालियों के लिए प्रसिद्ध है। इसकी 5वीं मंज़िल को मोतीमहल या जहाज़महल कहा जाता है। इसका निर्माण सालिम सिंह ने स्वयं अपने लिए कराया था। मोतीमहल के ऊपर लकड़ी की दो मंजिलें बनी थीं, जो क्रमशः शीशमहल और रंगमहल कहलाती थीं। इन दोनों तलों को सालिम सिंह की मौत के बाद राजकीय कोप के कारण तुड़वा दिया गया था।


5.दीवान नथमल की हवेली

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भव्य हवेलियों की श्रेणी में तृतीय दीवान नथमल की हवेली है। 19वीं सदी में पीले रंग के पत्थरों से बनी इस पांच मंजिला हवेली का निर्माण महारावल बेरीसाल के समय हुआ था। इस हवेली को अद्भुत रूप में प्रस्तुत करने वाले शिल्पकार "हाथी"व "लालू" थे। इन दोनों ने इस हवेली के निर्माण का आधा-आधा काम किया था। हवेली के प्रवेश द्वार के दोनों छोरों पर दो अलंकृत हाथी बने हुए हैं। नथमल की हवेली जैसलमेर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है।


6.बड़ा बाग

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बड़ा बाग जैसलमेर का एक अति महत्वपूर्ण स्मारक स्थल है, जहां राज परिवार की शमशान स्थली है। यह स्थान जैसलमेर के उत्तर पश्चिम में रामगढ़ मार्ग पर सुनहरे मगरों के मध्य भव्य घाटी में स्थित है। यहां सर्वप्रथम जैसलमेर के शासक रावल जैतसिंह तृतीय की छतरी का निर्माण उनके पुत्र महारावल लूणकरणसिंह ने 1528 में करवाया था। तब से लेकर आज तक जैसलमेर के राज परिवार के सदस्यों का अंतिम संस्कार इसी स्थान पर होता आया है। यहां पर भव्य कलात्मक 104 स्मारकों का निर्माण हुआ है। बड़ा बाग जैसलमेर में घूमने के लिए प्रसिद्ध स्थानों में से एक है।


7.कुलधरा गांव

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यह गाँव अपने रहस्यमयी इतिहास के चलते पर्यटकों में काफी प्रसिद्ध है। जो भी पर्यटक जैसलमेर घूमने आते हैं, वो इस गांव को जरूर देखने आते हैं। जनश्रुति के अनुसार यह एक भूतिया गांव है, क्योंकि यह गांव सालों से वीरान पड़ा है। गांव के आस पास के लोगों का कहना है कि यहां पर अक्सर भूतिया घटनाएं होती है, जिसके कारण कोई भूलकर भी यहां जाने की कोशिश नहीं करता। कुलधरा गांव आज जिस हालात में है वैसा पहले कभी नहीं था। आज से 200 साल पहले कुलधरा गांव में पालीवाल ब्राह्मण काफी संख्या में रहते थे। 1825 में अचानक सभी लोगों ने इस गांव को खाली कर दिया। मान्यता है कि गांव को खाली करते हुए लोगों ने ये श्राप दिया कि जो भी इस गांव में बसने की कोशिश करेगा, वो पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा। जैसलमेर से कुलधरा गांव की दूरी 27 km है।


8.सैम सैंड ड्यूंस 

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जैसलमेर शहर से लगभग 40 किमी पश्चिम में स्थित यह स्थान जैसलमेर के सबसे लोकप्रिय पर्यटक स्थलों में से एक है। अगर आप राजस्थान में एक अनोखे अनुभव की तलाश में हैं, तो आपको सैम सैंड ड्यून्स में जरूर आना चाहिए। ये भारत के सबसे अनोखे और खूबसूरत रेत के टीले, जहां आप देख सकते हैं रेगिस्तान का जादू। यहां आप ऊंट सवारी, जीप-सफारी, कैंपिंग नाइट या सांस्कृतिक शो का आनंद ले सकते हैं। यहां आने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक है। इस बीच आप यहां मरु महोत्सव, ऊंट मेला, दिवाली, होली आदि का आनंद ले सकते हैं।

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इसके अलावा यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम सैम सैंड ड्यूंस में की जाने वाली सबसे दिलचस्प गतिविधियों में से एक है, जिसमें राजस्थान के लोक नृत्य, गीत, संगीत और वेशभूषा का प्रदर्शन किया जाता है। यहां आप कलाकारों के साथ शामिल होकर उनके साथ नृत्य भी कर सकते हैं।


9.डेजर्ट नेशनल पार्क

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यह पार्क जैसलमेर शहर से 45 km की दुरी पर स्थित है। पक्षी प्रेमियों को खास तौर पर डेजर्ट नेशनल पार्क की सैर पसन्द आएगी, क्योंकि यह कई तरह की पक्षी प्रजातियों का घर है। राजस्थान के इस प्रसिद्ध पार्क में ब्लैक बक, रेगिस्तानी लोमड़ी और चिंकारा जैसे कई दिलचस्प जानवर देखने को मिलते हैं। इनमें से सबसे मशहूर ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, जो एक लुप्तप्राय पक्षी प्रजाति है, जो केवल भारत में ही पाई जाती है, यहां देखी जा सकती है। नवम्बर से मार्च तक का समय डेजर्ट नेशनल पार्क घूमने के लिए सबसे अच्छा समय है। राजस्थान का यह लोकप्रिय वन्यजीव अभयारण रेत के टीलों से भरा हुआ है, साथ ही यहां ऊबड़ खाबड़ चट्टानें भी मौजूद हैं।


10.अकाल वुड फॉसिल पार्क

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यह राजस्थान का सबसे बड़ा वन्य जीव अभ्यारण्य है, जो जैसलमेर से 18 km की दुरी पर स्थित है। यह पार्क 210000 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। इस पार्क में 180 करोड़ साल पुराने जंगलों के अवशेष पाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि अधिक जीवाश्म गहराई में है, और अभी भी इस क्षेत्र में खुदाई चल रही है। इस पार्क में जीवाश्म पेड़ के तने और समुंद्री शंख, जो सदियों पुराने हैं, भारतीय रेगिस्तान के भूवैज्ञानिक इतिहास के प्रमुख नमूने हैं। पार्क में कुछ झोपड़ियां है। इन झोंपड़ियों में डायनासोर के दांत, हड्डियां और पत्थर के जीवाश्म है।


11.अमर सागर जैन मंदिर 

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जैसलमेर के निकट अमर सागर तालाब के किनारे सन् 1871 में बना यह भव्य जैन मंदिर न केवल शिल्पकला की दृष्टि से उत्कृष्ट है बल्कि वास्तुशास्त्र का भी जीवंत उदाहरण है। इस मंदिर का निर्माण हिम्मतराम बाफना द्वारा किया गया था। यह जैसलमेर शहर से 5 किमी की दूरी पर स्थित है।


12.भगवान लक्ष्मीनाथ जैन मंदिर 

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जैसलमेर दुर्ग में स्थित इस मंदिर का निर्माण रावल लक्ष्मण के राज्य काल में करवाया गया था। इसमें लक्ष्मी व भगवान विष्णु की युग्म प्रतिमा है। इस मंदिर के निर्माण में शासक के अतिरिक्त सातों जातियों द्वारा निर्माण कार्य में सहायता प्रदान करने के कारण यह जन-जन का मंदिर कहलाता है। यहां से प्राप्त एक प्रस्तर लेख के अनुसार इस मंदिर की स्थापना सन 1437 में हुई थी। कहा जाता है कि यहां की मूर्तियां पूरे देश में सबसे खूबसूरत मूर्तियों में से एक हैं, जो जैसलमेर में एक प्रमुख आस्था का केंद्र बनी हुई हैं। इस मंदिर में एक साधारण वास्तुशिल्प को बड़ी सुंदरता से अलंकृत किया गया है, जिसमें मंदिर के दरवाजे में चांदी की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है।


13.पार्श्वनाथ जैन मंदिर 

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जैसलमेर से 15 किमी की दूरी पर स्थित लुद्रवा जैन मंदिर, 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित है। न केवल मंदिर प्राचीन स्थिति में है, बल्कि यह रहने के लिए एक शांतिपूर्ण जगह भी है। पत्थरों पर नक्काशी, प्रकाश और छाया का खेल, जीवन का राजश्री वृक्ष और यहां का समृद्ध इतिहास पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।


14.रामकुण्डा का मंदिर 

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यह मंदिर काक नदी के किनारे स्थित है। यहां पर महारावल अमर सिंह के राज्यकाल में तपस्वी साधु अनंतराम जी का आगमन हुआ था। अनंतराम जी ने इसी कुंड के पास अपना आश्रम स्थापित किया था। ये रामानंदी साधु थे। इस कारण इस कुंड को रामकुंड कहा जाने लगा। रामकुंड मंदिर का निर्माण महारावल अमर सिंह की पत्नी मनसुखी देवी ने करवाया था। मंदिर में राम और सीता की मूर्तियां स्थापित हैं। इसके अतिरिक्त मंदिर में चार भुजाओं वाले गणेश, महिसासुर और भेरू की सुंदर और तेजी से नक्काशीदार पीले बलुआ पत्थर की मूर्तियां भी मौजूद हैं। जैसलमेर में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का यह प्रथम मंदिर है। राम नवमी के दिन यहां मैला लगता है। जैसलमेर से रामकुंड मंदिर की दूरी 12 किमी है।


15.गणेश चुंगी मंदिर 

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जैसलमेर में लुद्रवा मार्ग पर भीलों की ढाणी के पास काक नदी के मध्य गणेश की प्राकृतिक प्रतिमा है। इस स्थान को च्यवन ऋषि का आश्रम कहा जाता था। कालांतर में इसका नाम चुंगी हो गया है। इस मंदिर में आने वाले भक्त मंदिर के आस-पास बिखरे पत्थरों से अपना मन चाहा घर बनाते हैं। इसके बाद प्रार्थना करते हैं कि जैसा घर उन्होंने मंदिर में बनाया है, वैसा ही घर उनका स्वयं का भी जल्दी बना दें।

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यह मंदिर नदी के बीचो बीच बना है जिससे बारिश में यहां मंदिर परिसर में पुरी तरह से पानी भर जाता है। यह बरसाती पानी मूर्ति को छूकर ही निकलता है। मूर्ति के बारे में यह मान्यता भी है कि प्रतिवर्ष गणेश चतुर्थी से पहले बारिश होती है और सभी देवता मिलकर गणेशजी का जलाभिषेक करते हैं।


16.स्वांगिया माता जी के मंदिर 

स्वांगिया माता जी भाटियों की कुल देवी हैं। स्वांगिया देवी का प्रतीक त्रिशूल है। जैसलमेर में इनके 7 मंदिर हैं...


1.तेमड़ीराय का मंदिर 

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यह मंदिर जैसलमेर के दक्षिण में गरलाऊने नामक पर्वत की कंदरा में बना हुआ है। यहां भक्तों को देवी के दर्शन छछूंदरी रूप में होते हैं। चारण लोग इन्हें द्वितीय हिंग्लाज़ मानते हैं। इस पर्वत पर तेमड़ा नामक विशालकाय हूण जाति का असुर रहता था, जिसको माता ने इस पर्वत की गुफा में गढ़ा दिया था, जो आज भी वहीं विद्यमान है। वर्तमान में हजारों श्रद्धालु पैदल व अपने साधनों से प्रति वर्ष माता के अलौकिक रूप के दर्शन करने आते हैं। यह जैसलमेर से 27 km की दूरी पर स्थित है।


2.तनोट राय का मंदिर 

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भाटी तनु राव ने स्वांगिया माता का मंदिर तनोट में बनवाया। इसे तनोट देवी भी कहते हैं। इसकी पूजा अर्चना जैसलमेर राजघराने की और से करने की व्यवस्था की गई। 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद अब पूजा का कार्य सीमा सुरक्षा बल के भारतीय सैनिकों द्वारा संपादित किया जाता है। देवी के मंदिर के सामने ही 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध में भारत की विजय का प्रसिद्ध स्मारक विजयस्तंभ भी स्थित है।

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इस युद्ध के दौरान पाकिस्तानियों ने मंदिर के आस-पास लगभग 3000 बम बरसाए, जिसमे से 450 बम मंदिर परिसर में गिरे। माता रानी की कृपा से मंदिर परिसर में एक भी बम नहीं फटा। तनोट माता को रुमाल वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है। माता तनोट के प्रति प्रगाढ़ आस्था रखने वाले भक्त मंदिर में रूमाल बांधकर मन्नत मांगते हैं, और मन्नत पूरी होने पर भक्त माता का आभार व्यक्त करने वापिस मंदिर आते हैं। यह मंदिर जैसलमेर से 122 km की दूरी पर स्थित है।


3.घंटियाली माता मंदिर 

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स्वांगिया देवी का यह मंदिर जैसलमेर से 115 km की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर करीब 1200 साल पुराना है। माता घंटियाली का यहां ऐसा चमत्कार दिखा,कि 1965 की जंग के दौरान पाकिस्तानी सैनिक अपनी ही सेना को भारतीय सैनिक समझ एक दूसरे पर गोलियां दागने लगे,कुछ पाकिस्तानी सैनिक घंटियाली माता मंदिर तक पहुंच गए और मंदिर को नुकसान पहुंचाया तो माता का एक और चमत्कार हुआ और आपसी विवाद के चलते सारे पाकिस्तानी सैनिक आपस में लड़कर मर गए। इसके अलावा घंटियाली तक पहुंची एक अन्य पाकिस्तानी टुकड़ी ने माता की मूर्ति का श्रृंगार उतारने की कोशिश की तो वे सभी अंधे हो गए थे।


4.भादरिया राय का मंदिर 

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यह मंदिर जोधपुर जैसलमेर मार्ग पर धौलिया गांव के निकट भादरिया गांव में स्थित है। इसका निर्माण महारावल गजसिंह ने करवाया था। मंदिर को आधुनिक रूप संत हरवंश सिंह निर्मल ने दिया। श्री भादरिया माता का मंदिर जन जन की आस्था का केंद्र है। विभिन्न समाजों में कई परिवार माता को कुल देवी के रूप में पूजते हैं। यह जैसलमेर से 78 km की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर का इतिहास 1100 साल से भी ज्यादा पुराना है।


5.काला डूंगरराय का मंदिर 

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काला डूंगरराय माता का यह मंदिर जैसलमेर से 31 किमी दूर हाड़ा गांव से थोड़ा आगे कानोड़ जाने वाले मार्ग पर काले रंग की पहाड़ी पर बना हुआ है। मांड प्रदेश की भाषा में पहाड़ी को डूंगर कहा जाता है, इसलिए यह मंदिर काला डूंगरराय का मंदिर कहलाता है। सिंध प्रदेश के विनाश के बाद आवड़ आदि देवियाँ अपने माता पिता के साथ पुनः अपने राज्य में लौट आईं। जिस गांव में वे रुकीं थीं,वहां के लोगों ने उनका स्वागत करते हुए गांव का नाम आइता रखा, और देवी भगवती ने गांव के पास स्थित काले डूंगर को अपना निवास बनाया जो काले डूंगरराय के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां इनके चमत्कारों की प्रसिद्धि हुई। संवत् 1998 में महारावल जवाहर सिंह ने हुकमसिंह जी के जन्मदिवस पर यहां मंदिर का निर्माण करवाया।


6.देगराय का मंदिर 

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यह मंदिर जैसलमेर से पूर्व दिशा में 52 km की दुरी पर देगराय जलाशय (देवीकोट - फलसुंड मार्ग) पर बना हुआ है। ऐसी मान्यता है कि यहां बुगा सेलावत की भैंसे चरा करती थीं। भैंसों के झुंड में एक दैत्य छिपकर रहता था। देवी स्वांगिया के आदेश से बहादरिया ने अपनी तलवार से उस भैंसे रूपी दैत्य को काट डाला। अन्नतर देवी स्वांगिया और उनकी सभी बहनों ने उस भैंसे का रक्तपान किया,और भैंसे के सिर को देग बनाकर उसमें भैंसे का खून गर्म कर अपनी ओढ़नियाँ रंगी। भैंस के सिर को देग बनाने के कारण इस स्थान का नाम देगराय पड़ा। मंदिर में स्थापित प्रतिमा में सातों देवियों को त्रिशूल से भैंसे का वध करते दर्शाया गया है। देगराय के देवल में रात को ठहराना मुश्किल है। यहां रात में नगाड़ों ओर घुंघरुओं की ध्वनि सुनाई देती है और कभी-कभी दीपक स्वत: ही प्रज्वलित हो जाते हैं।


7.गजरूप सागर देवालय 

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यह जैसलमेर में गजरूप सागर तालाब के पास समतल पहाड़ी पर निर्मित स्वांगिया देवी का मंदिर है। इसका निर्माण महारावल गजसिंह ने करवाया था। यह मंदिर जैसलमेर से 6 km की दुरी पर स्थित है।


17.सोनार किले में स्थित जैन मंदिर 

जैसलमेर किले में स्थित जैन मंदिर पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। इस किले में सात जैन मंदिरों का एक बड़ा परिसर है। जैसलमेर के ये जैन मंदिर वास्तुकला के चमत्कार माने जाते हैं। जैन मंदिरों के समूह में निम्न मंदिर शामिल है...


1.ऋषभदेव जैन मंदिर 

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जैन तीर्थंकरों में सबसे पहले तीर्थंकर ऋषभदेव थे, और जैसलमेर किले में यह मंदिर उन्हें समर्पित है। यह मंदिर चंद्रप्रभु मंदिर के पास स्थित है। इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि यहां मुख्य सभी मंडप के स्तंभों पर हिंदू देवी देवताओं का स्वरूप है। कहीं राधा कृष्ण और कहीं अकेले कृष्ण को वंशी वादन करते दर्शाया गया है।


2.पार्श्वनाथ जैन मंदिर 

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जैसलमेर दुर्ग स्थित यह मंदिर अपने स्थापत्य, मूर्तिकला व विशालता हेतु विख्यात है। वृदिरत्न माला के अनुसार इस मंदिर में मूर्तियों की कुल संख्या 1235 है। इसके शिल्पकार का नाम घन्ना था। इसका निर्माण काल ​​विक्रम संवत 1473 था। तब जैसलमेर पर रावल लक्ष्मण सिंह का शासन था। पार्श्वनाथ 23 वें जैन तीर्थंकर थे, ओर इस मंदिर में पार्श्वनाथ जी की सुंदर नक्काशीदार संगमरमर की मूर्तियां हैं।


3.संभवनाथ जैन मंदिर 

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इस मंदिर की स्थापना रावल बैर सिंह के समय विक्रम संवत 1497 में शिवराज, महिराज व लखन नामक श्वेतांबर पंथी जैन परिवार द्वारा की गई थी। इस मंदिर के रंगमहल की गुम्बंदनुमा छत स्थापत्य में दिलवाड़ा मंदिर के समान है। इस मंदिर के भूगर्भ में बने कक्ष में दुर्लभ पुस्तकों का भंडार जिन्नदत्त सूरी ज्ञान भंडार  स्थित है, जिसमें जैन धर्म से संबंधित प्राचीन पांडुलिपियां हैं। संभव नाथ जैन धर्म के तीसरे जैन तीर्थंकर थे, और यह मंदिर इन्हें ही समर्पित है।


4.शीतलनाथ जैन मंदिर 

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शीतलनाथ जी दसवें जैन तीर्थंकर थे,और इस मंदिर में शीतलनाथ जी की एक सुंदर मूर्ति है। इस मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी के आसपास हुआ था। और इस मंदिर में देखने वाली सबसे अनोखी चीज शीतलनाथ जी की मूर्ति है, जो 8 अनमोल धातुओं से बनी है। मूर्ति के अतिरिक्त आप विशाल स्तंभ, गुंबद, गलियारों और मंदिर के प्रवेश द्वार पर अद्भुत मूर्तियां देख सकते हैं।


5.शांतिनाथ एवं कुंथुनाथ जी का मंदिर 

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यह जुड़वा मंदिर है। प्रथम तल का मंदिर कुंथुनाथ को व ऊपर का शांतिनाथ जी को समर्पित है। इस मंदिर के शिखर को महामेरू पर्वत की कल्पना कर साकार किया गया है।

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यह मंदिर विक्रम संवत 1536 में बनकर तैयार हुआ। इस मंदिर का निर्माण जैसलमेर निवासी चोपड़ा एवम् शंखवाल गोत्रीय जैन धर्मानुयायी परिवार ने संयुक्त रूप से किया था। इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है, कि इस मंदिर में खेतसी नामक शंखवाल गोत्रीय व्यक्ति ने दशावतार ओर लक्ष्मीनाथ भगवान की प्रतिमाएं स्थापित कर हिंदू, जैन धर्म की एकता को मान्यता दी थी, यही कारण है कि इस मंदिर में दोनों धर्मों के अनुयायी एक समान रूप से पूजा करते हैं। जैसलमेर के सभी मंदिरों में यह सर्वश्रेष्ठ है।


7.चंद्रप्रभु जैन मंदिर

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यह तीन मंजिला विशाल जैन मंदिर जैन तीर्थंकर चंद्रप्रभु को समर्पित है। रणकपुर के मंदिर के स्थापत्य के समान इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था। अलाउद्दीन ख़िलजी ने जैसलमेर पर आक्रमण के समय इसका विनाश कर दिया था। जैन धर्मानुयाइयों ने इसका पुनः निर्माण कराया। यह एक सुन्दर ओर प्राचीन जैन मंदिर है, जो बहुत ही सुन्दरता से बनाया गया है। यह मंदिर एक विशिष्ट राजपूत शैली का मंदिर है, जो पर्यटन का प्रमुख केंद्र है।


18.पोकरण दुर्ग 

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जैसलमेर जिले के पोकरण कस्बे में लाल पत्थरों से निर्मित इस दुर्ग का निर्माण सन् 1550 में जोधपुर के शासक राव मालदेव ने करवाया था। किले में मंगल निवास संग्रहालय, तोपें, द्वार, बुर्जें और सुरक्षात्मक दीवार दर्शनीय है। पोकरण का किला पोकरण का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। पोकरण के किले को अब होटल में बदल दिया गया है। पोकरण दुर्ग को बालागढ़ किले के नाम से भी जाना जाता है। यह किला मुगल व राजपूत शैली में बना हुआ है।


19.ताजिया टॉवर 

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यह 5 मंजिला भवन बादल पैलेस परिसर में स्थित है। यह ताजिया की आकृति का है। इसका निर्माण 1886 ई. में मुस्लिम नक्काशीकारों ने किया था। जैसलमेर में यह अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। ताजिया टॉवर विभिन्न मुस्लिम इमामों के मकबरे की प्रतिकृति है, जिसकी दीवारों पर जटिल नक्काशी की गई है। यह टॉवर राजस्थान की सामान्य राजपूताना वास्तुकला से बिलकुल अलग है।


20.मूलसागर 

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मूलराज सागर का निर्माण महारावल मूलराज द्वितीय द्वारा सन् 1815 में करवाया गया। जैसलमेर से 16 km पश्चिम में स्थित, यह एक छोटा बगीचा और तालाब है। मूलसागर परिसर में कई कुएं, मूलसागर उद्यान और एक शानदार राज महल बना हुआ मिलेगा। यह जैसलमेर के शाही परिवार से संबंधित है, और मूल रूप से गर्मियों में ठंडी जगह के रूप में बनाया गया था। इस जगह का मुख्य आकर्षण एक शिव मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है, कि यह बलुआ पत्थरों के दो बड़े ब्लॉकों से बना है।


21.जैसलमेर वॉर म्यूजियम 

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हमारे देश के सैनिकों का पराक्रम और बलिदान किसी से छिपा नहीं है और उनके इसी शौर्य की वजह से हम अपने देश में आजादी से रहते हैं। जैसलमेर वॉर म्यूजियम में हमारे देश के सैनिकों के पराक्रम को देखने की झलक मिलती है। यहां पर भारत पाकिस्तान युद्ध से जुड़े कई अहम दस्तावेज व हथियार प्रदर्शित किए गए हैं। यह म्यूजियम जैसलमेर शहर से 13 km दूर जोधपुर मार्ग पर बनाया गया है। यह म्यूजियम 24 अगस्त 2015 को देश को समर्पित किया गया था। जैसलमेर वॉर म्यूजियम 10 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है। इस म्यूजियम में दो बड़े सूचना प्रदर्शन हॉल और एक ऑडियो विजुअल कक्ष है। यह म्यूजियम निश्चित रूप से जैसलमेर आने वाले सभी भारतीय और विदेशी पर्यटकों के लिए एक दर्शनीय स्थल है।


22.चुंगी तीर्थ मेला

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जैसलमेर में चुंगी तीर्थ मेला एक महत्वपूर्ण, धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन है। इस मेले का आयोजन गणेश चुंगी मंदिर में होता है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी व गंगा सप्तमी को यह मेला भरा जाता है। यह मेला बड़ी संख्या में भक्तों व पर्यटकों को आकर्षित करता है, जो धार्मिक अनुष्ठानों और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने और जश्न मनाने के लिए आते हैं। यह मेला भगवान श्री गणेश जी के सम्मान में आयोजित किया जाता है। इस मंदिर में गणेश जी की प्राकृतिक प्रतिमा है, जो धरती से निकली है। यह मंदिर भक्तों को मन चाहा घर दिलाने वाले गणेश जी के नाम से प्रसिद्ध है। इस मेले में आए भक्तों को स्थानीय हस्तशिल्प,भोजन और अन्य पारंपरिक वस्तुएं खरीदने का मौका मिलता है। यह क्षेत्र की आध्यात्मिकता, परंपराओं और जीवंत संस्कृति का अनुभव करने का एक शानदार अवसर प्रदान करता है। यह मेला बरसात के मौसम में आयोजित होता है, जिससे आगंतुकों के लिए यात्रा करना ओर उत्सव का आनंद लेना आसान हो जाता है।


23.मरु महोत्सव, जैसलमेर 

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मरु महोत्सव जैसलमेर जिले का एक मुख्य पर्यटन और सांस्कृतिक उत्सव है, जिसे डेजर्ट फेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है। यह महोत्सव हर साल फरवरी के महीने में आयोजित किया जाता है और जैसलमेर की समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और रेगिस्तानी जीवन शैली को उजागर करता है। यह मरु मेला जैसलमेर शहर के प्रमुख स्थानों, जैसे सैम सैंड ड्यूंस और विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों पर आयोजित होता है। इस मेले में पारंपरिक लोक नृत्य (जैसे कालबेलिया और घूमर) और लोक संगीत इस महोत्सव की जान होते हैं। इसके अलावा ऊंट सजावट, ऊंट दौड़ और ऊंट पोलो जैसी गतिविधियाँ आयोजित की जाती है।

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इसके अतिरिक्त पारंपरिक राजस्थानी भोजन और मिठाईयां जैसे दाल बाटी चूरमा, घेवर आदि का लुत्फ उठाया जा सकता है। सांस्कृतिक झलक की बात करें तो कठपुतली शो, कालबेलिया नृत्य और पारंपरिक हस्तशिल्प प्रदर्शनी इस उत्सव का हिस्सा होती हैं। यदि आप सांस्कृतिक गतिविधियों और रेगिस्तान के अदभुत अनुभव का आनंद लेना चाहते हैं, तो मरु महोत्सव में भाग लेना आपके लिए यादगार होगा।


24.अमर सागर झील

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जैसलमेर के अमर सागर तालाब व बांध का निर्माण महारावल अमरसिंह ने सन् 1688 में प्रारम्भ करवाया था। इसकी प्रतिष्ठा सन् 1692 में करवाई गई। इसके पास ही अमर बाग स्थित है। बांध के ऊपर श्री अमरेश्वर महादेव का मंदिर है। अमर सागर झील में आप नौका विहार भी कर सकते हैं। यह झील जैसलमेर से 7 km की दुरी पर स्थित है।


25.रामदेवरा 

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रामदेवरा का मेला राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध मेला है। रामदेवरा पोकरण के निकट रुणिचा कस्बे में बाबा रामदेव का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है, जहां सभी क्षेत्रों से सभी समुदाय के लोग आते हैं। इस मंदिर के पुजारी तंवर जाति के राजपूत होते हैं। रामदेव जी को श्वेत व नीले घोड़े चढ़ाए जाते हैं। रामदेवरा धार्मिक स्थल के साथ साथ एक पर्यटन स्थल भी है। यह मेला भाद्रपद शुक्ल 2 से 11 तक भरा जाता है। इस दौरान यहां लाखों श्रद्धालु बाबा रामदेव जी के दर्शन करने आते हैं। 

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रामदेव जी के मंदिर के पास ही एक परचा बावड़ी स्थित है, जो देखने लायक है। इस बावड़ी का निर्माण विक्रम संवत् 1857 में पूर्ण हुआ था। इस बावड़ी में लाखों श्रद्धालु सैकड़ों सीढ़ियां नीचे उतर कर दर्शन करने के लिए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस बावड़ी में स्नान करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

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बाबा रामदेव जी के मंदिर में डाली बाई का कंगन स्थित है। जितने भी श्रद्धालु रामदेवरा बाबा रामदेव जी के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं, वो इस कंगन के अंदर से अवश्य निकलते हैं। पत्थर का बना यह डाली बाई का कंगन लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस कंगन के अंदर से निकलने पर श्रद्धालुओं के सारे रोग नष्ट हो जाते हैं।

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रामदेवरा से 2 km दूर रुणिचा कुआं स्थित है। यह कुआं बाबा रामदेव जी के चमत्कार से निर्मित एक कुआं है। यहां पर बाबा रामदेव जी का एक छोटा सा मंदिर भी स्थित है।

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रामदेव जी मंदिर के पास ही रामदेव जी पैनोरमा स्थित है। यहां पर बाबा रामदेव जी द्वारा दिखाए गए सभी पर्चों का विस्तृत उल्लेख मिलता है। यह पैनोरमा किसी संग्रहालय से कम नहीं है। रामदेवरा में घूमने वाले सभी पर्यटकों के लिए यह एक दर्शनीय स्थल है।

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बाबा रामदेव जी के मंदिर के पीछे ही राम सरोवर स्थित है। यह सरोवर 25 फिट गहरा है। श्रद्धालु इस सरोवर में स्नान करते हैं और इस सरोवर में नौका विहार करने की व्यवस्था भी की गई है। इस सरोवर का निर्माण बाबा रामदेव जी ने किया था। आज भी पास के सभी गांवों में इस सरोवर से पानी की पूर्ति की जाती है।

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रामदेवरा के पास ही पंच पीपली स्थित है। बाबा रामदेव जी के कई पर्चे आज भी विख्यात हैं, उनमें से एक परचा इस पंच पीपली से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि एक समय में मक्का मदीना से पांच पीर बाबा रामदेव जी के यहां रामदेवरा में अतिथि बनकर आए थे। जब बाबा रामदेव जी ने उन्हें भोजन परोसा तो उन पीरों ने यह प्रण बताया कि वे सिर्फ अपने बर्तन में ही भोजन ग्रहण करेंगे तो बाबा रामदेव जी ने उनका यह प्रण पूर्ण करवाया।

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रामदेवरा से 4 km की दुरी पर डाली बाई का मंदिर मंदिर है। इस मंदिर में एक पेड़ है। यह वही पेड़ है जहां डाली बाई बाबा रामदेव जी को एक नवजात शिशु के रूप में मिली थी। इसी पेड़ को डाली बाई की जाल कहा जाता है। लोग इस जाल पर चुनरी बांधकर अपनी मन्नत मांगते हैं। रामदेवरा दर्शन करने आए भक्त डाली बाई के मंदिर में अवश्य आते हैं। 

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रामदेवरा के पास पोकरण कस्बे में श्री आशापुरा माता जी का मंदिर है। यह मंदिर पोकरण में घूमने की प्रसिद्ध जगह है। यह मंदिर पोकरण में पश्चिम की तरफ स्थित है। रामदेवरा घूमने आये बहुत से भक्त यहां माता जी के दर्शन करने के लिए आते हैं। यह मंदिर बहुत ही खूबसूरत है। इसका मण्डप पूरा कांच से सजा हुआ है और मंदिर के गर्भगृह में माता जी की सुन्दर मूर्ति के दर्शन करने को मिलते हैं। इस मंदिर में पर्यटकों के ठहरने की बहुत अच्छी व्यवस्था की गई है। 

रामदेवरा में घूमने आये पर्यटकों को रामदेवरा के आस पास स्थित सभी धार्मिक स्थलों के दर्शन करने को मिलते हैं इसलिए रामदेवरा का मेला राजस्थान का सबसे अनोखा व प्रसिद्ध मेला है।


निष्कर्ष 

जैसलमेर के पर्यटन स्थल आपको इतिहास, संस्कृति और प्रकृति का अनोखा संगम प्रदान करते हैं। चाहे वह स्वर्णिम किला हो, थार का विस्तृत रेगिस्तान या ऐतिहासिक हवेलियां... यह शहर हर यात्री के दिल में अपनी जगह बना लेता है। इस अद्भुत यात्रा का अनुभव करने के बाद, जैसलमेर से विदा लेते समय यहां की यादें हमेशा आपके साथ रहेंगी। रेगिस्तान की रातों का सुकून, सांस्कृतिक धरोहरों का गर्व और यहां के लोगों का आतिथ्य सत्कार आपको फिर से लौटने के लिए प्रेरित करेगा। 


1.जैसलमेर के लिए 2 दिन काफी है?

Answer - जैसलमेर में प्रमुख आकर्षणों को देखने के लिए दो दिन का समय पर्याप्त हो सकता है, लेकिन यदि आप और अधिक देखना चाहते हैं तो आपको अधिक समय तक रुकना पड़ सकता है।


2.क्या जैसलमेर खरीदारी के लिए अच्छा है?

Answer - जी हाँ, जैसलमेर खरीदारी के लिए एक बेहतरीन जगह है, खासकर अगर आप पारंपरिक राजस्थानी हस्तशिल्प, वस्त्र और आभूषणों में रुचि रखते हैं। यह शहर अपने जीवंत बाज़ारों के लिए जाना जाता है, जहाँ आप कई तरह के अनूठे और स्थानीय रूप से बने उत्पाद पा सकते हैं।


3.जैसलमेर घूमने के लिए सबसे अच्छा महीना कौनसा है?

Answar- जैसलमेर घूमने का सबसे अच्छा समय नवंबर से फरवरी तक है , सर्दियों के महीनों के दौरान। इस अवधि में 10 डिग्री सेल्सियस से लेकर 25 डिग्री सेल्सियस तक का ठंडा तापमान होता है, जो इसे दर्शनीय स्थलों की यात्रा और रेगिस्तान की खोज के लिए आदर्श बनाता है।


4.जैसलमेर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल क्यों है?

Answar- जैसलमेर अपनी एतिहासिक वास्तुकला, सोनार किला, शानदार हवेलियों और अपने धार्मिक स्थलों के कारण पर्यटकों में प्रसिद्ध है।


5.जैसलमेर में सबसे अच्छा खाना क्या है?

Answer- जैसलमेर में पारम्परिक राजस्थानी व्यंजनों की एक समृद्ध झलक मिलती है, जिसमें दाल बाटी चूरमा, केर सांगरी,गट्टे की सब्जी, लाल मास व भांग लस्सी प्रसिद्ध है।


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